मेरे उस मित्र की याद है न आपको, आज यह उनकी दूसरी कविता मेल में आयी है-बिल्कुल दुरुस्त लगती है, इसमें क्या शुद्ध परिशुद्ध करना! क्या कहते हैं आप?
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नहीं चाहिए मुझे अधूरा, खंडित और विकलांग प्यार देह और मन का द्वंद्व भी नहीं आएगा रास मुझे मैं प्यार को उसकी समग्रता में हासिल करने का मुन्तजिर हूँ अनमने विखंडित मन का प्यार नहीं रास आता मुझे दे सको तो दो अपना निर्बाध प्रेम नहीं तो,विवशता और बन्धनों से ग्रसित यह तुम्हारा प्यार नहीं चाहिए मुझे मेरे उस मित्र की याद है न आपको,आज यह उनकी दूसरी कविता मेल में आयी है-बिल्कुल दुरुस्त लगती है,इसमें क्या शुद्ध परिशुद्ध करना! क्या कहते हैं आप?